Guru Gobind Singh Jayanti 2024: सिख समुदाय के 10 में गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी को उन्हें विद्वानों का संरक्षक भी माना जाता है गुरु गोबिंद सिंह एक महान योद्धा थे लेकिन उनके साथ-साथ एक कवि और लेखक भी थे गुरु गोबिंद सिंह के दरबार में 52 कवि और लेखक मौजूद हुआ करता था वे संस्कृत के अलावा और कई भाषा का जानकारी रखते थे
गोबिंद सिंह जी ने कई सारे ग्रंथ की संरचना की है जो समाज को काफी प्रभावित करता है खालसा की स्थापना सिख समुदाय के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है इनके द्वारा दिया गया है गुरु गोविंद साहब ने सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना किया था।
गुरु गोबिंद साहब मधुर आवाज के भी धनी थे इनके साथ उनकी सहनशीलता और सादगी से भरे हुए थे गरीबों के लिए मसीहा और हमेशा लड़े और सबको बराबर का हक़ देने का काम किया समाज में भाई चारों को बनाए रखने के लिए संदेश दिया 2024 में गुरु गोविंद सिंह की जयंती 17 जनवरी 2024 को मनाई जा रही है।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2024
357वी गुरु गोविंद सिंह जयंती 2024 बुधवार 17 जनवरी 2024
- सप्तमी तिथि शुरुआत 16 जनवरी 2024 को रात 11:57
- सप्तमी तिथि समाप्त 17 जनवरी 2024 को रात 10:00
Guru Gobind Singh Jayanti: गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म कहां हुआ था उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना जिले में हुआ था श्री गुरु तेग बहादुर जी के यहां हुआ था सिख समुदाय के नवे गुरु थे उनकी माता का नाम गुजरी देवी बचपन में गोविंद राय के नाम से जाने जाते गुरु गोविंद सिंह अपने जीवन की शुरुआती 4 वर्षों में पटना के घर में ही बीते जहां उनका जन्म हुआ था।
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1670 के बाद में उनका परिवार पंजाब के आनंदपुर साहब नामक स्थान पर रहने आ गया पहले चक ननकी नाम से जाना जाता था यह हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों पर स्थित है इनका परमबिक शिक्षा की शुरुआत चक ननकी की से हुआ था यह योग एक योद्धा बनने के लिए जिन कल की शुरुआत करनी पड़ती है उन्होंने यहीं से सीखी उसके साथ ही वे संस्कृति और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।
गुरु गोविंद सिंह जी का धर्म परिवर्तन करने की कोशिश
एक बार की व्याख्या है कश्मीरी पंडित अपनी फरियाद लेकर श्री गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आए दरबार में पंडितों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाए जाने की बात की साथ ही कहा कि हमारी यह शर्त भी माननी पड़ेगी अगर धन परिवर्तन नहीं किया तो हमें अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा ऐसा कोई महापुरुष है जो इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया और अपना बलिदान दे सके तो सबका धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
गुरु तेग बहादुर खुद को बलिदान क्यों किये।
उसे समय की बात है जब गुरु गोबिंद सिंह महेश 9 साल के थे अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर गुरु तेग बहादुर देव जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के खिलाफ खुद को बलिदान कर दिए लोगों का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन से बचने के लिए स्वयं इस्लाम ना कबूल करने के कारण 11 नवंबर 1675 को औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक पर आम लोगों के सामने गुरु तेग बहादुर सिंह का सिर धड़ से अलग कर दिया इसके बाद 29 मार्च 1676 में श्री गोविंद सिंह जी को सिखों का दसवां गुरु घोषित कर दिया गया।
गुरु गोविंद सिंह जी का विवाह
10 साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह जी का विवाह हो गया था 21 जून 1677 के दिन माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में इनका शादी संपन्न हुआ गुरु गोविंद सिंह और माता जीतो के तीन पुत्र हुआ जिनका नाम जुझार सिंह जोरावर सिंह फतेह सिंह 17 वर्ष की उम्र में दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ 4 अप्रैल 1684 को आनंदपुर में हुआ उनसे एक बेटा हुआ जिनका नाम अजीत सिंह था।
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उसके बाद 33 वर्ष की आयु में तीसरा शादी 15 अप्रैल 1700 में माता साहिब देवन के साथ किया उनसे कोई संतान नहीं हुआ पर सिख पंथ के पन्नों और गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन बहुत ही प्रभावशाली स्थान था इस तरह के से गुरु गोबिंद सिंह की कुल तीन शादियां हुई।
खालसा पंथ की स्थापना
1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद साहब ने खालसा पंथ की स्थापना की जिसके अंतर्गत सिख धर्म के अनुसार विवर्वत दीक्षा प्राप्त करते हैं सिख समुदाय के एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है इस समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राजी हो गया और वह खुद गुरु गोविंद सिंह उसे तंबू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून में तलवार के साथ गुरु ने दोबारा उसी भीड़ के लोगों से वही सवाल किया और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राजी हो गया उनके साथ वे तंबू से जब बाहर निकले तो खून से सनत तलवार उनके हाथ में था इस तरह पांचवा स्वयंसेवक जब तंबू के भीतर गया कुछ देर बाद गुरु गोविंद सिंह जी सभी जीवित सेवाओं को साथ वापस लौटे तो उन्हें पंज प्यार या पहले खालसा का नाम दिया गया।
गुरु गोविंद सिंह जी ने एक लोहे का कटोरा लिया उसमें पानी और चीनी मिलाकर दो धारी तलवारों को गोल पर अमृत का नाम दिया पहले पांच खालसा बनने के बाद उन्होंने छठवा खालसा का नाम दिया उसके बाद उनका नाम गुरु गोविंद सिंह राय से गुरु गोविंद सिंह रख दिया गया उन्होंने पांच करो का महत्व खालसा के लिए लोगों को समझाया और कहा केस कंधा कड़ा कृपाण कक्षा तभी से सिख समुदाय अपने केस कंधा कड़ा साथ कृपाण कक्षा अपने साथ रखते हैं।
गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण उपदेश
गुरु गोविंद सिंह जी ने उपदेश दिए जो आज भी खालसा पंथ और सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
- वचन करके पालना अगर आपने किसी को वचन दिया है तो उसकी हर कीमत पर निभाना होगा।
- किसी से निंदा चुगली ईर्ष्या नहीं करना अगर किसी की चुगली व निंदा से हमें हमेशा बचना चाहिए और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय परिश्रम से फायदा करना चाहिए।
- कम करण विच दीदार नहीं करना अपने काम में खूब मेहनत करो और काम को लेकर कभी लापरवाही ना करें।
- गुरबाणी गांठ करनी गुरबाणी को याद कर ले।
गुरु गोविंद सिंह जी की रचनाएं
गुरु गोविंद सिंह जी ने सिर्फ अपने महान उपदेशों के लिए लोगों का मार्गदर्शन किया बल्कि उन्होंने समाज में कई अत्याचारों और दरिद्रो के अपराधों के खिलाफ विरोध किया उनके द्वारा लिखी गई कुछ रचनाएं इस प्रकार हैं।
जब साहिब
काल उत्सव
बचित्र नाटक
चंडी चरित्र
जफर नामा
खालसा महिमा
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